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मोहनी एकादशी में दुर्लभ “त्रिस्पृशा” योग, बार बार नहीं मिलता यह अद्भुत संयोग

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विराट न्यूज नेशन ।

 

एकादशी का व्रत और इसके महत्व को तो सभी लोग जानते हैं । पर इस बार 23 मई दिन रविवार को पढ़ने वाली मोहनी एकादशी दुर्लभ संयोग लेकर आ रही है। यह संयोग है मोहनी एकादशी के दिन त्रिस्पृशा योग। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि जिंदगी में यह संयोग बार-बार नहीं मिलता। इस एकादशी पर परिवार के सभी सदस्यों को वृत रख कर पूजा पाठ अवश्य करना चाहिए। इस एक दिन के उपवास से सहस्त्र एकादशी व्रत का फल प्राप्त होता है।

 

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पद्मपुराण में बताया गया है कि यदि सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक एकादशी, द्वादशी व त्रयोदशी मिलकर त्रिस्पृशा योग बनातीं हैं। थोड़ी सी एकादशी, द्वादशी व अंत मे किंचित मात्र भी त्रयोदशी से यह योग बनता है। इस बार यह अद्भुद योग रविवार को पड़ने वाली मोहनी एकादशी पर बन रहा है। एक सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक इन तीनों तिथियों का मिलना आसान नहीं है। हमारे जीवन मे कभी कभार ही यह दुर्लभ योग देखे जाते हैं। यह दुर्लभ योग मोहनी एकादशी को त्रिस्पृशा एकादशी बनाता है। जिसमे ब्रत रखने से व सच्चे मन से ईश्वर की पूजा करने से लगभग सारी जिंदगी की एकादशी का फल प्राप्त होता है।

 

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पद्मपुराण के अनुसार यदि एक ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ को उपवास कर लिया जाय तो एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल (लगभग पुरी उम्रभर एकादशी करने का फल )प्राप्त होता है । ‘त्रिस्पृशा-एकादशी का पारण त्रयोदशी मे करने पर 100 यज्ञों का फल प्राप्त होता है । प्रयाग में मृत्यु होने से तथा द्वारका में श्रीकृष्ण के निकट गोमती में स्नान करने से, जो शाश्वत मोक्ष प्राप्त होता है, वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ का उपवास कर घर पर ही प्राप्त किया जा सकता है। पद्मपुराण के उत्तराखण्ड में ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया गया है ।

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