बेटियों की विदा पर रोने वालों उनपर अत्याचार होने पर चुप क्यों रहते हो
नेहा वर्मा, संपादक ।
जब आंगन से बेटी विदा होती है तो पिता के प्राण निकलते हैं। विदाई के वक्त मौजूद हर इंसान की आंखों में आंसू होते हैं। यह आंशू उस वक्त कहां जाते हैं जब उसकी बेटी पर अत्याचार होता है। जब बेटियां हवस की शिकार बनतीं हैं तब समाज के आंसू क्यों सूख जाते हैं। क्यों नहीं बेटियों की रक्षा के लिए समाज आगे आता है। क्यों बेटियों के प्रति पुरुषवादी समाज की सोच बदलती है।
यह ललकार बाल विदुषी प्रभुप्रिया रामायणी ने हमीरपुर जनपद में राठ नगर के जलविहार मंच पर चल रही श्रीराम कथा के दौरान लगाई। रामायणी शिव पार्वती विवाह में माता पार्वती की विदाई की कथा सुना रहीं थीं। कथा सुनते हुए समूचे पंडाल में मौजूद लोगों की आंखें छलक उठीं। इसी बीच रामयणी ने ऐसा सवाल किया जिसने सभी को सोचने पर विवश कर दिया। उन्होंने आगे कहा श्रीराम कथा हमें नारी सम्मान व इन्हीं अत्याचारों से दूर रहने की सीख देती है।
प्रभुप्रिया ने कहा पार्वत के जन्म पर नारद मुनि पर्वतराज हिमायल के यहां पहुंचे व नामकरण किया। कहा यदि पार्वती तपस्या करें तो भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करेंगीं। शिवजी ने कामदेव को भस्म किया। भगवान शिव व मां पार्वती का मंगल विवाह हुआ। विदाई के समय राजा हिमांचल व मां मेना फूट फूट कर रोए। श्रीराम कथा में नगर पालिका अध्यक्ष श्रीनिवास बुधौलिया, मेला जलविहार समिति के अध्यक्ष केजी अग्रवाल, मुख्य यजमान रेखा कल्लू जड़िया, नगर सेठ कैलाशचंद्र अग्रवाल, रमेशचंद्र सर्राफ, रामगोपाल गुप्ता, उपेंद्र द्विवेदी, नरोत्तम शुक्ला आदि मौजूद रहे।