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दिवान शत्रुघ्न सिंह के नाम से थर्राते थे अंग्रेज अफसर

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Virat News Nation

माधव द्विवेदी, प्रधान संपादक ।

 

बुंदेलखंड की रत्नगर्भा पावन धरा अनेक महापुरुषों की जन्मभूमि है। हमीरपुर जनपद में जन्मे त्रिमूर्ति के नाम से विख्यात स्वामी ब्रम्हानंद, दिवान शत्रुघ्न सिंह व पंडित परमानंद आजादी के संग्राम में क्रांतिकारियों के सिरमौर रहे हैं। आजादी की जंग में खुद को समर्पित करने के साथ ही स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र व समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जंगे आजादी के शूरवीर दिवान शत्रुघ्न सिंह को उनके 121वें जन्मदिन पर विराट न्यूज नेशन की टीम नमन करती है।

 

 

जंगे आजादी के सूरमा बुंदेलखण्ड केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह के नाम से अंग्रेज अधिकारी दहल उठते थे। अंग्रेज अफसर को युद्ध फंड देने से मना कर अंग्रेजी हुकूमत की आंख की किरकिरी बन गए थे। खुलेआम बगावत का एलान कर अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी थी। संत विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में अपना पूरा गांव दान देने वाले दीवान साहब पत्नी रानी राजेंद्र कुमारी सहित स्वाधीनता के आंदोलन में कूद पडे़ थे। जेल की यातनाएं भी उनके हौसले को नहीं डिगा पायीं। उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेक कर दी दम लिया।

 

 

हमीरपुर जनपद में मंगरौठ रियाशत के दीवान सुदर्शन सिंह व रावरानी के यहां 25 दिसंबर 1901 में जन्मे दीवान शत्रुघ्न सिंह को अकूत संपत्ति विरासत में मिली थी। मां भारती को पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा देख उन्हें धन दौलत रास नहीं आई। बचपन से दिल में आजादी का तराना था। क्रांतिकारी पंडित परमानंद के संपर्क में आते ही आजादी का यह मतवाला अपनी पत्नी रानी राजेंद कुमारी सहित स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ा। अंग्रेजी अफसर को युद्ध फंड देने से मना कर बगावत का एैलान किया। सन् 1921 में वालंटियर की भर्ती व सत्याग्रह पर उन्हें जेल में डाल दिया गया।

 

 

दिवान साहब असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन में कई बार जेल गए। सविनय अवज्ञा आंदोलन में वर्ष 1933 में दीवान साहब को रानी राजेंद कुमारी सहित गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। उनकी पत्नी रानी राजेंद कुमारी भी आजादी की आहुति में अपने पति से पीछे नहीं रहीं। वर्ष 1930 में अपने ढाई वर्ष के बच्चे सहित उन्हें जेल जाना पड़ा था। मंगरौठ गांव में खादी आश्रम, कालपी में हिंदी भवन सहित कई शिक्षण संस्थानों की नींव रखी।

 

 

सक्रिय कांग्रेसी रामगोपाल गुप्त ने मंगरौठ में दीवान साहब से मिलकर प्रेस व्यवस्था का प्रस्ताव रखा। साथ ही इसके लिए आवश्यक धन एकत्रित करने का निवेदन किया। दीवान साहब ने तुरंत अपने घर से दो हजार रुपये साइकिलो स्टाइल मशीन खरीदने के लिए दिए। स्टेशनरी आपूर्ति के लिए भी अतिरिक्त धन की व्यवस्था की। उक्त मशीन मंगरौठ के एक हरिजन परिवार के यहां पर लगाई गई। 18 जून 1939 को बुंदेलखंड केसरी नाम से साप्ताहिक पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

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