क्षेत्रीयहमीरपुर

सावधान; एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक “हाथी पांव” की दस्तक, छलका मरीजों का दर्द

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विराट न्यूज डेस्क, हमीरपुर।

 

फाइलेरिया के शुरुआती लक्षण-
0 सर्दी (कंपकंपी) देकर बुखार का आना।
0 त्वचा का काला पड़ जाना या त्वचा में उभार आ जाना।
0 लसिका ग्रंथियों में सूजन।
0 हाथ-पांव, अंडकोष या स्तन के आकार में परिवर्तन।

 

हमीरपुर जनपद में भरुआ सुमेरपुर ब्लाक के बड़ी आबादी वाले टेढ़ा गांव में कुछ वर्षों में फाइलेरिया के मरीज तेजी से बढ़े हैं। मौजूदा समय में गांव में 29 मरीज चिन्हित हैं, जिनमें से कुछ मरीजों के परिवारों में यह बीमारी दूसरी पीढ़ी को भी अपनी चपेट में ले चुकी है। हाथी पांव जैसी विकृति के साथ जीवन जीने वाले मरीज दूसरों को इस बीमारी से बचाव की नसीहत देते हुए फाइलेरिया की दवा खाने को प्रेरित भी कर रहे हैं। टेढ़ा गांव के ऐसे ही कुछ मरीजों ने अपने दर्द बयां किया।

 

Virat News Nation
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टेढ़ा गांव के 70 साल की उम्र पार कर चुके कुंवर साहब जब 20 साल के थे, तभी फाइलेरिया की गिरफ्त में आए। वह बताते हैं कि पैर में सूजन आई और तेज बुखार आया। बांदा में इलाज कराया, झाड़-फूंक भी कराई, लेकिन कोई आराम नहीं मिला। 50 साल से वह फाइलेरिया के दंश को झेल रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी मां लक्ष्मी देवी को भी फाइलेरिया की शिकायत थी। वह 80 साल तक जीवित रहीं। उन्हें भी कम उम्र में फाइलेरिया हुआ था। इसके बाद घर में दूसरे रोगी वह स्वयं थे।

 

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फिर कुछ समय बाद उनकी दो बहनों को भी फाइलेरिया हो गया। हालांकि इस वक्त कुंवर साहब के परिवार में दूसरा कोई फाइलेरिया रोगी नहीं है। कुंवर साहब बताते हैं कि जब से फाइलेरिया को रोकने के लिए घर-घर दवा खिलाने का अभियान शुरू हुआ, तब से वह नियमित तौर पर दवा का सेवन कर रहे हैं और परिजनों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। इतना ही नहीं गांव में दवा खाने से कतराने वालों को अपना फाइलेरिया ग्रसित दाहिना पैर दिखाकर प्रेरित करते हैं ताकि जो दिक्कतें झेलकर वह आज उम्र के आखिरी पड़ाव पर है, वैसा कोई न झेले। उन्होंने बताया कि नियमित दवा के सेवन से स्थिति में पहले से काफी सुधार है।

 

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गांव की 85 साल की रानी देवी भी एक अरसे से फाइलेरिया से ग्रसित हैं। बहू पार्वती ने बताया कि जब वह ब्याह कर इस घर आई थी, उससे पहले से उनकी सास फाइलेरिया से ग्रसित थी। उस दौर में इलाज का अभाव था। झाड़-फूंक में ही लोगों का विश्वास था। उनकी सास ने सिसोलर गांव जाकर बीमारी से उबरने के लिए कर्णछेदन करवाया। अन्य टोने-टोटके किए, लेकिन आराम नहीं मिला। हालांकि परिवार के सभी लोग पूरी तरह से स्वस्थ हैं। नियमित दवा का भी सेवन करते हैं। रानी देवी अभी भी अपने कामकाज स्वयं कर लेती। लेकिन साल में एकाध बार फाइलेरिया के अटैक की वजह से उनका पैर लाल हो जाता है। चोट लग जाए तो पानी सा रिसने लगता है।

 

क्या कहते हैं आंकड़े –
जिला मलेरिया अधिकारी आरके यादव ने बताया कि जनपद में फाइलेरिया रोगियों की संख्या कुल 1186 है। ब्लाक वार देखें तो सुमेरपुर में 278, मुस्कुरा में 275, मौदहा में 170, नौरंगा (राठ) में 154, गोहांड में 70, सरीला में 61, कुरारा में 92 व हमीरपुर अर्बन में 86 फाइलेरिया के मरीज हैं।

एक से दूसरे में होता है बीमारी का ट्रांसमीशन
पीसीआई के जिला समन्वयक प्रेम सिंह कटियार बताते हैं कि मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाला फाइलेरिया एक संक्रामक बीमारी है। इसमें व्यक्ति किसी भी उम्र में संक्रमित हो सकता है। फाइलेरिया के लक्षण हाथ-पैर की सूजन है। किसी भी व्यक्ति को संक्रमण के बाद बीमारी का पता चलने में 5 से 15 वर्ष लग सकते हैं। एक परिवार में अगर कोई मरीज है तो यह निश्चित है कि दवा न खाने की वजह से अन्य सदस्य भी उससे प्रभावित हो सकते हैं।

 

फाइलेरिया का जोखिम न उठाएं, दवा खाएं
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.एके रावत कहते हैं कि फाइलेरिया मुक्त अभियान के दौरान साल में एक बार दवा का सेवन जरूर करें। यह दवा सरकार द्वारा प्रतिवर्ष मुफ्त में खिलाई जाती है। फाइलेरिया लाइलाज है। इसे होने से रोका जा सकता है, मगर एक बार हो जाए तो व्यक्ति पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता है। इसलिए जोखिम न उठाएं। दवा जरूर खाएं।

 

दवा खाने के क्या हैं फायदे-
0 दवा फाइलेरिया के परजीवियों को समाप्त कर देती है और हाथी पांव व हाइड्रोसील जैसी बीमारी से बचाने में मदद करती है।
0 यह दवा पेट के अन्य खतरनाक कीड़ों को भी खत्म करती है तथा खुजली एवं जू खात्मे में भी मदद करती है।

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