संपादकीय

अनोखी परंपरा; हम राम तो नहीं, फिर रावण दहन का अधिकार हमें किसने दिया

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Virat News Nation

नेहा वर्मा, संपादक ।

 

“उत्तर प्रदेश में हमीरपुर के बिहूनी गांव में स्थापित है सैकड़ों वर्ष पुरानी रावण की प्रतिमा, दशहरे पर नहीं किया जाता रावण दहन।।”

 

महात्मा गांधी ने कहा था, “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।“ बापू की इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं हमीरपुर जनपद के मुस्करा क्षेत्र में बिहुनी गांव के वासिंदे। यहां दशहरा पर रावण नहीं जलाया जाता। मान्यता है कि जिस रावण से खुद भगवान लक्ष्मण ने ज्ञान लिया, उसे इंसान कैसे जला सकते हैं। गांव के बीच में रावण के नौ सिर वाली विशाल प्रतिमा भी स्थापित है। जिसे सजा संवार कर पूजन किया जाता है।

 

हमीरपुर जनपद में मुस्करा व राठ के बीच नदी किनारे बिहूनी गांव बसा है। गांव के बीचोंबीच रामलीला मैदान है। रामलीला मैदान के ठीक सामने रावण की दस फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। 9 सिर व 20 भुजाओं वाली प्रतिमा के सिर पर मुकुट है। जिसमें घोड़े की आकृति बनी है। रावण की यह प्रतिमा बैठने की मुद्रा को दर्शाती है। ग्रामीण बताते हैं कि यह प्रतिमा सीमेंट अथवा चूने से बनाई गई है। कब और किसने इसका निर्माण कराया यह गांव के बड़े बुजुर्गों को भी पता नहीं है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि प्रतिमा करीब एक हजार वर्ष पुरानी होगी।

 

गांव की इस प्राचीन धरोहर को सहेजने का काम ग्राम पंचायत द्वारा किया जा रहा है। प्रतिवर्ष इस प्रतिमा की रंगाई पुताई कराई जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में कभी रावण दहन नहीं किया जाता है। तर्क देते हैं कि रावण महाविद्धान थे। अंतिम समय में भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण ने उनके चरणों के पास खड़े होकर ज्ञान लिया था। जिस विद्धान से खुद भगवान ने ज्ञान लिया उस विद्धान के पुतले को जलाने का इंसान को क्या अधिकार है। वेद वेदांत के ज्ञात रावण का दहन कर अपने धर्म शास्त्रों ं का अपमान नहीं कर सकते।

 

ग्रामीण बताते हैं कि दशहरे पर रावण की प्रतिमा को रंग रोगन कर सजाया जाता है। साज श्रंगार के बाद ग्रामीण श्रद्धा से नारियल चढ़ाते हैं। विजयदशमी का पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते हैं। पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता। रावण की प्रतिमा स्थापित होने से इस मोहल्ले को रावण पटी कहते हैं। विवाह के बाद नवदंपति रावण की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।

 

रावण की प्रतिमा के सामने मंदिर व रामलीला मैदान है। प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें दूरदराज से आने वाले व्यापारी अपनी दुकानें लगाते हैं। मेले के दौरान रामलीला का मंचन भी होता है। करीब एक सप्ताह तक चलने वाली रामलीला में रावण वध के बाद भी पुतले को नहीं जलाया जाता। रामलीला कलाकार प्रतीकात्मक रूप में रावण वध करते हैं। ग्रामीण रावण की प्रतिमा पर नारियल चढ़ा कर सुख सम्रद्धि की कामना करते हैं।

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