100 में दो-चार ही पवित्र लड़कियां? – Premananda Maharaj Controversial Statement से मचा बवाल
Premananda Maharaj Controversial Statement: प्रेमानंद महाराज का बयान “100 में दो-चार ही लड़कियां पवित्र होती हैं” सोशल मीडिया पर भारी आलोचना का कारण बन गया है। जानिए इस विवाद की पूरी कहानी और प्रतिक्रियाएं।
विवाद की जड़: क्या बोले प्रेमानंद महाराज?
Premananda Maharaj Controversial Statement अब पूरे देश में बहस का विषय बना हुआ है। एक निजी बातचीत का वीडियो क्लिप वायरल हो गया है, जिसमें वे कहते नजर आ रहे हैं:
“आज के समय में 100 में से मुश्किल से दो-चार लड़कियां ही पवित्र होती हैं, बाकी सभी बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड के चक्कर में पड़ी हुई हैं।”
यह कथन न केवल महिलाओं की गरिमा पर सवाल खड़े करता है, बल्कि संत समाज की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया
वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर कई यूजर्स ने संत प्रेमानंद को जमकर घेरा। एक यूजर ने लिखा:
“इन संतों को महिलाओं की बेइज्जती करने में कौन-सी संतुष्टि मिलती है?”
वहीं एक अन्य ने कहा:
“नारी के बिना समाज संभव नहीं। ऐसे बयानों से धार्मिक संस्थाओं की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है।”
संतों की जुबान और विवाद
यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले अनिरुद्धाचार्य ने भी महिलाओं को लेकर विवादित टिप्पणी की थी, जिसे महिला संगठनों ने संविधान-विरोधी बताया था। उस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने संज्ञान लेते हुए संत से माफी मंगवाई थी।
अब प्रेमानंद महाराज के बयान ने भी संत समाज की छवि को धूमिल किया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह प्रचार की नई रणनीति है?
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महिलाओं की गरिमा पर हमला
21वीं सदी में जहां महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी ताकत दिखा रही हैं—विज्ञान से लेकर सेना तक—वहीं ऐसे बयान महिला सशक्तिकरण के प्रयासों को कमजोर करते हैं। ऐसे समय में जब भारत “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” जैसा कदम उठा रहा है, संतों के ऐसे बयान समाज को पीछे धकेलते हैं।
क्या यह पब्लिसिटी स्टंट है?
कई सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स का मानना है कि Premananda Maharaj Controversial Statement जानबूझकर वायरल करवाया गया है ताकि चर्चाओं में बने रहें। आज के डिजिटल युग में सनसनीखेज बयान बहुत जल्दी वायरल होते हैं और इससे किसी भी व्यक्ति की लोकप्रियता कुछ समय के लिए जरूर बढ़ जाती है।
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संतों से समाज को क्या उम्मीद होती है?
भारत में संतों की भूमिका सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी होती है। उनके शब्दों को लोग दिशा की तरह मानते हैं। ऐसे में यदि वे नारी अस्मिता पर आघात करते हैं, तो यह समाज के लिए घातक है।
कई शिक्षाविदों का मानना है कि संतों को महिलाओं की भूमिका को सम्मान देने वाले विचार रखने चाहिए, ताकि समाज में संतुलन बना रहे।
Premananda Maharaj Controversial Statement ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर धर्म और मर्यादा की रक्षा करने वाले लोग स्वयं मर्यादा लांघने वाले बयान क्यों दे रहे हैं?
जहां हम महिला समानता की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं ऐसे बयान सामाजिक संरचना को झकझोरते हैं। समाज को इन बयानों का विरोध कर, संत समाज से और अधिक जवाबदेही की मांग करनी चाहिए।
- NCW took action on Aniruddhacharya’s comment
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम की जानकारी (PIB)
- Premanand Maharaj Biography and Public Speeches – Wikipedia
आपके विचार?
क्या आपको लगता है कि प्रेमानंद महाराज का यह बयान महज संयोग है या एक सोची-समझी रणनीति? नीचे कमेंट करें और अपनी राय ज़रूर साझा करें।