संपादकीय

इस गेरुए वस्त्रधारी साधु से कांपते थे अंग्रेज अफसर, यातनाएं सहीं पर नहीं डिगा हौसला

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माधव द्विवेदी, प्रधान संपादक

 

माधव द्विवेदी, प्रधान संपादक ।

 

 

गृहस्थ जीवन से विरत एक संत जब जंगे आजादी में कूद पड़ा तो उनका रौद्र रूप देख अंग्रेज अफसर भी थर थर कांप उठे। हजारों यातनाएं भी संत का हौसला नहीं डिगा पायीं। एक बार हुंकार भरी तो देश को आजादी दिलाने के बाद ही सांस ली। ऐसे क्रांतिकारी संत स्वामी ब्रह्मानंद को उनके जन्म दिवस पर शत शत नमन ।

 

सांसारिक मोहमाया से विरत गेरुए वस्त्रधारी संत स्वामी ब्रह्मानंद मां भारती को पराधीनता की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं भी उनका हौसला नहीं डिगा पाईं। आजादी के बाद शिक्षा की ज्योति जलाने के साथ ही कुरीतियों के खिलाफ खड़े रहे।

 

 

 

बरहरा गांव के कृषक मातादीन महतों के घर 4 दिसम्बर सन् 1894 को विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक शिवदयाल का जन्म हुआ। 23 वर्ष की आयु में भरा पूरा परिवार छोड़कर शिवदयाल ने सन्यास ले लिया। हरिद्धार में उन्हें नया नाम मिला स्वामी ब्रह्मानंद। गेरुए वस्त्र धारी गो रक्षा आंदोलन के प्रमुख इस संत के दिल में मातृभूमि की परतंत्रता की पीड़ा थी। इस पीड़ा ने मोह माया से विरत संत को क्रांतिकारी बना दिया और स्वामी जी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।

 

 

 

स्वामी ब्रम्हानंद अनेक बार जेल गए और अंग्रेजी सरकार की यातनाएं सहीं। महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू व गणेश शंकर विद्यार्थी के करीबी रहे। 1947 में रियासतों के मुक्ति आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। अशिक्षा के अंधकार को दूर करने के लिये सन् 1938 में राठ नगर में ब्रह्मानन्द इण्टर कालेज, 1943 में ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालय तथा 1960 में ब्रह्मानन्द महाविद्यालय की नींव रखी।

 

 

स्वामी ब्रह्मानंद ने 1966 में गो हत्या विरोधी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। करीब पांच सौ साधुओं के साथ गोरक्षा कानून बनाने की मांग लेकर संसद भवन पहुंच गए। स्वामी संसद के अंदर जाने की जिद पर अड़े थे। सुरक्षा में तैनात एक अधिकारी ने तंज किया कि अंदर जाना है तो पहले सांसद बनकर आओ। हठी संत के दिल में बात घर कर गई। 1967 में हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। इंदिरा गांधी के संपर्क में आने पर 1971 में कांग्रस के टिकट पर दोबारा संसद पहुंचे। सारा वेतन व पेंशन ब्रह्मानंद शिक्षण संस्थान को दान किया। एक कुटिया में रहे और आजीवन पैसे को हाथ नहीं लगाया।

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