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Mahashivaratri : राठ के इस मंदिर में 5 हजार साल से पूजा करने आतीं हैं राजकुमारी उत्तरा, राजा विराट ने कराई थी शिवलिंग की स्थापना

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Neha varma

 

नेहा वर्मा, संपादक ।

 

 

 

Hamirpur News : राठ का चौपरेश्वर मंदिर रहस्यों से भरा है। कहा जाता है कि महाभारत काल मे राजा विराट ने इस मंदिर की स्थापना कराई है। मान्यता है कि आज भी राजा विराट की बेटी राजकुमारी उत्तरा महाशिवरात्रि पर मंदिर में पूजा करने आतीं हैं। मंदिर से सटे तालाब का पानी हमेशा हरा ही रहता है।

 

 

 

उज्जैन के महाकालेश्वर से मिलते हैं चौपरेश्वर महादेव

राठ के पूर्व में स्थित चौपरेश्वर (चौपरा) धाम अपने गर्भ में पांच हजार साल से महाभारत काल की यादें संजोए है। कहते हैं कि महाभारत काल में राजा विराट ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। अपनी बेटी राजकुमारी उत्तरा की देव आराधना के लिए शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। यह शिवलिंग उज्जैन के महाकालेश्वर शिवलिंग से मिलता है। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक साल भी यहीं व्यतीत किया था। भीम ने राजा विराट के साले कीचक का वध किया था। जिसकी समाधि आज भी दानू मामू के चबूतरे के रूप में मौजूद है।

 

 

 

राजा विराट की राजधानी था राठ नगर

राठ नगर को राजा विराट की राजधानी कहा जाता है। पूर्व में इसे विराट नगरी कहते थे। समय के साथ विराट का नाम बदलते हुए राठ हो गया। नगर के पूर्व में चौपरेश्वर मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा विराट ने अपनी बेटी उत्तरा को पूजा अर्चना करने के लिए कराया था। मंदिर में स्थापित शिवलिंग उज्जैन के महाकालेश्वर से मिलता है। राजकुमारी उत्तरा प्रतिदिन शिवलिंग की पूजा अर्चना करने आतीं थीं। मंदिर से सटा प्राचीन चौपरा तालाब है जिसका पानी हमेशा हरा रहता है। कई बार तालाब का पानी निकाल कर फिर से भरा गया पर इसका रंग नहीं बदला।

 

 

 

राठ में पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास का एक वर्ष

मान्यता है अज्ञातवास के दौरान अर्जुन बृहन्नला का रूप धारण कर उत्तरा को इसी तालाब के तट पर नृत्य की शिक्षा देते थे। राज्य पर्यटन विभाग ने भी इसे महाभारतकालीन होने की मान्यता दी है। महाशिवरात्रि पर चौपरेश्वर मंदिर में भगवान शिव व माता पार्वती का विवाह धूमधाम से संपन्न कराया जाएगा। शिवलिंग का दूल्हे के रूप में श्रंगार होता है। स्वर्ण मुकुट सहित चांदी के छत्र से सुसज्जित शिवलिंग की छटा देखते ही बनती है। रात में विधि विधान से विवाह संस्कार संपन्न कराए जाते हैं। मंदिर परिसर के बाहर मेला लगता है।

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