Diwan Shatrughan Singh Story- एक दीवान, जिसके नाम से कांपते थे अंग्रेज
Diwan Shatrughan Singh Story: हमीरपुर जनपद के राठ क्षेत्र के मंगरौठ गांव का एक युवा दिवान, जिसने विलासिता के जीवन को ठुकरा कर पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी माँ भारती की आजादी के लिए संघर्ष किया। पढ़ें — स्वतंत्रता संग्राम, भूदान आंदोलन और बुंदेलखंड केसरी अखबार में उनके योगदान की प्रेरक कहानी जानें।
माधव द्विवेदी, प्रधान संपादक, विराट न्यूज नेशन।
Hamirpur: भारत की आज़ादी का ऐसा प्रेरक अध्याय है, जिसमें साहस, त्याग और अदम्य देशभक्ति दिखाई देती है। बुंदेलखंड केसरी के नाम से जाने जाने वाले दीवान शत्रुघ्न सिंह अंग्रेज अफसरों के लिए डर का दूसरा नाम बन गए थे।
उनके साथ उनकी पत्नी रानी राजेंद्र कुमारी ने भी आज़ादी की लड़ाई में बराबरी से हिस्सा लिया।
जन्म और जीवन की शुरुआत — Diwan Shatrughan Singh Story
25 दिसंबर 1901 को मंगरौठ में जमींदार दीवान सुदर्शन सिंह और रावरानी के घर जन्मे शत्रुघ्न सिंह को विरासत में बड़ी संपत्ति मिली।
लेकिन विलासिता उन्हें पसंद नहीं आई — उनके दिल में आज़ादी का सपना पल रहा था।
वे क्रांतिकारी पंडित परमानंद के संपर्क में आए और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए।
यहीं से Diwan Shatrughan Singh Story ने नया मोड़ लिया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सार — https://www.mkgandhi.org
स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका
दीवान साहब ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया। वे इन प्रमुख आंदोलनों से जुड़े—
- असहयोग आंदोलन
- नमक सत्याग्रह
- सविनय अवज्ञा आंदोलन
- व्यक्तिगत सत्याग्रह
- भारत छोड़ो आंदोलन
कई बार जेल गए —
1933 में पत्नी के साथ जेल,
और 1930 में रानी राजेंद्र कुमारी ढाई साल के बच्चे सहित जेल पहुँचीं।
यह साहस Diwan Shatrughan Singh Story को विशेष बनाता है।
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समाज सेवा और शिक्षा में योगदान
आजादी के बाद उन्होंने राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी।
उन्होंने स्थापित किए—
- मंगरौठ में खादी आश्रम
- कालपी में हिंदी भवन
- कई शिक्षण संस्थान
इनका उद्देश्य था — स्वदेशी, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना।
गांव से शुरू हुआ ‘बुंदेलखंड केसरी’ समाचारपत्र
सक्रिय कांग्रेसी रामगोपाल गुप्त के सुझाव पर
दीवान साहब ने तुरंत दो हजार रुपये देकर प्रेस मशीन खरीदी और स्टेशनरी की व्यवस्था की।
18 जून 1939 को ‘बुंदेलखंड केसरी’ का पहला अंक निकला —
यह ग्रामीण पत्रकारिता की बड़ी शुरुआत थी।
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भूदान आंदोलन — पूरा गांव दान
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पूरी मंगरौठ जागीर दान कर दी।
वे क्रांतिकारियों के लिए धन जुटाते रहे और
रानी राजेंद्र कुमारी ने अपने सारे आभूषण दान कर दिए।
वर्ष 2009 में अमेरिका से उनकी तस्वीर वाला डाक टिकट जारी हुआ —
यह उनकी विरासत का सम्मान था।
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क्यों खास है Diwan Shatrughan Singh Story?
- अंग्रेजों के खिलाफ खुली बगावत
- अनेक बार जेल जाने के बाद भी संघर्ष जारी
- शिक्षा व सामाजिक सुधार में योगदान
- भूदान आंदोलन में पूरा गांव दान
- पत्नी के साथ आज़ादी के लिए अद्वितीय त्याग
उनका जीवन संदेश देता है —
देशप्रेम कर्म और त्याग से सिद्ध होता है।
FAQs — Diwan Shatrughan Singh Story
Q1: उन्हें बुंदेलखंड केसरी क्यों कहा गया?
क्योंकि उन्होंने बुंदेलखंड में बड़े जनआंदोलनों का नेतृत्व किया।
Q2: क्या उनकी पत्नी भी स्वतंत्रता सेनानी थीं?
हाँ — वे कई बार जेल गईं और अपने आभूषण तक दान कर दिए।
Q3: क्या उन्होंने वास्तव में पूरा गांव दान किया था?
हाँ — भूदान आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी जागीर दान कर दी।
