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टेढ़े-मेढ़े पंजे (क्लबफुट) वाले बच्चों का जिला अस्पताल हमीरपुर में होगा मुफ्त उपचार

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नेहा वर्मा, संपादक ।

 

हमीरपुर। टेढ़े-मेढ़े पंजे (क्लबफुट) के साथ  जन्म लेने वाले नवजात  को अब इस विकृति से निजात पाने के लिए बांदा नहीं जाना होगा। इस जन्मजात विकृति से नवजातों को निजात दिलाने की मुहिम चलाने वाली मिरेकल फीट इण्डिया संस्था का जल्द ही जिला अस्पताल में क्लीनिक खुलेगा। शासन से पत्र आते ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को क्लीनिक के लिए आर्थोपैडिक ओपीडी के पास कक्ष आवंटित करने और क्लीनिक का संचालन शुरू कराने को निर्देशित किया है।

 

 

 

 

 

हमीरपुर जनपद के प्रसव केंद्रों में जन्म लेने वाले बच्चों का राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) की टीम स्वास्थ्य परीक्षण करती हैं। नवजात  में जन्मजात विकार या विकृति की पुष्टि होने के बाद उनके मुफ्त उपचार की व्यवस्था भी कराती हैं। खासतौर से पैर के टेढ़े-मेढ़े पंजों संग जन्म लेने वाले नवजातों को उपचार के लिए अभी तक बांदा भेजा जाता है। बांदा में मिरेकल फीट इंडिया टीम की मदद से ऐसे बच्चों को नि:शुल्क उपचार कराया जाता है।

 

 

 

 

अब ऐसे बच्चों को उपचार के लिए मिरेकल फीट इंडिया का जिला अस्पताल में क्लीनिक खुलेगा। इसके लिए शासन स्तर से पत्र जारी हुआ है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ.एके रावत ने बताया कि उन्होंने पत्र मिलते ही मुख्य चिकित्सा अधीक्षक जिला अस्पताल को पत्र लिखकर संस्था को आर्थोपैडिक ओपीडी के पास कक्ष उपलब्ध कराने को कहा है ताकि संस्था के प्रतिनिधि यहां बैठकर जन्मजात विकृति से ग्रसित बच्चों को देखकर उनके उपचार का इंतजाम करा सकें।

 

 

 

 

एक साल में सात बच्चों को दिलाई विकृति से निजात
आरबीएसके के डीईआईसी मैनेजर गौरीश राज पाल ने बताया कि वर्ष 2021-22 में जन्मजात पैर के टेढ़े-मेढ़े पंजों संग 13 बच्चों का जन्म हुआ है। इनमें से सात बच्चों का उपचार हो चुका है और शेष के उपचार की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2020 में मिरेकल फीट इण्डिया के माध्यम से आठ बच्चों को जन्मजात विकृति से छुटकारा दिलाया गया था। उन्होंने बताया कि आरबीएसके शून्य से छह  वर्ष तक के बच्चों में 11 और छह  से 18 साल के बच्चों में 44 किस्म की स्वास्थ्य दशाओं से ग्रसित होने पर नि:शुल्क उपचार कराया जाता है। सभी ब्लाकों में दो सदस्यीय टीमें हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में साल में दो बार और स्कूल-कॉलेजों में साल में एक बार बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है।

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